कुछ दिनों पहले मुझे यह जान कर बेहद ख़ुशी हुयी कि मशहूर गांधीवादी धरमपालजी ने लिखी पांच किताबें, जो Other India Press, गोवा ने हालही में पुनः प्रकाशित की हैं, अब इंटरनेट पर पूरी तरह उपलब्ध हैं। वे मुल्तिवेर्सिटी लिब्ररी और समनवय वेबसाइट दो नो ही जगहों पर से डाउनलोड की जा सकती हैं। इन पांच किताबों, जो सारी अंग्रेजी में है, उनके के नाम हैं:
Vol 1: Indian Science and Technology in the Eighteenth Century
Vol 2: Civil Disobedience in the Indian Tradition
Vol 3: The Beautiful Tree Indigenous Indian Education in the Eighteenth Century
Vol 4: Panchayat Raj and India’s polity
Vol 5: Essays on Tradition, Recovery and Freedom (which includes Bharatiya Chit, Manas and Kala)
धरमपालजी ने खुद अंग्रेजों द्वारा लिखित रपटों आदि में अनुसंधान कर गांधीजी के कुछ मूल सिद्धांतों और वक्ताय्वों के लिए ठोस ऐतिहासिक सबूत जमा किये हैं। अंग्रेजी हुकूमत से पहले कि (यानी सत्रवी अठार्वी सदी कि) भारतीय सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की जो छवि धरमपालजी प्रस्तुत करते हैं, वह आज भी वैश्वीकरण नामक साम्राज्यवाद से मोर्चा लेने में अत्यंत उपयुक्त साबित हो सकती है। और इन दिशाओं में कई लोग काम भी कर रहे हैं।
यह बहुत ही ख़ुशी कि बात है कि यह किताबें अब इंटरनेट पर मुफ्त उपलब्ध हैं। अपने पाठकों से मेरी दरख्वास्त है कि वे इन्हें ज़रूर पढे और औरों को भी बताएं।
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