इंटरनेट ने दुनिया के हर पहलू को छू लिया है। इस से अब कोई इनकार नहीं कर सकता। इस का मतलब यह नहीं होता कि इंटरनेट हर आदमी या औरत तक पहुंच गया है। हिंदुस्तान में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या दो या तीन प्रतिशत से ज़्यादा शायद ही होगी। इसे इंटरनेट कि दुनिया में digital divide कहा जाता है। और अगर यह लोग वेब दुनिया के सदस्य होते तो भी उन्हें भाषा कि चुनौती का सामना करना पड़ता। क्योंकि इंटरनेट पर सूचना और संचार का बहाव ज़्यादातर अंग्रेजी में ही हो रहा है। इंटरनेट के सबसे लोकप्रिय encyclopedia, wikipedia को ही लें तो यह दिखाई देगा कि इसमे अंग्रेजी के बीस लाख से भी ज़्यादा पन्ने हैं। दूसरी वीकसित देशों के भाषाएँ जैसे कि फ्रेंच, जर्मन, जापानी, डच आदि के चार से छे लाख तक पन्ने हैं। हिन्दी का नुम्बेर तीसरे क्रमांक पर आता है (दस हजार या अधिक पन्ने) और उर्दू का चौथे क्रमांक पर (एक हजार या अधिक पन्ने। भाषा की दुनिया में अंग्रेजी के एकाधिकार से मुक़ाबला करने के लिया यह ज़रूरी है कि दुनिया की अन्य भाषाओं, और खास कर "तीसरी दुनिया" की भाषाओं को इंटरनेट की दुनिया में प्रचलित किया जाये। और अब ऐसा करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी भी मौजूद है।
कुछ लोगों का मानना है कि इंटरनेट के इस नयी दुनिया ने समाज में बुनियादी किस्म के बदलाव लाये हैं। इन बदलावों को समझना होगा। इन बदलावों पर विमर्श ज़्यादातर वीकसित देशों में ही हो रहा है, हालाकि इनका असर पूरी दुनिया में दिखाई देता है। यह ब्लोग इसी दिशा में एक छोटा सा कदम है। लेकिन चूंके मेरी रूचि और भी कई चीजों में है, इस ब्लोग पर आपको अन्य विषयों पर entries भी मिलेंगी।
Special Intensive Revision in Bihar: Citizenship, Exclusion, and the Class
Character of the Indian State
-
A Sanhati report In recent years, debates over citizenship and exclusion
have increasingly shaped Indian political life. The experience of Assam’s
National...
2 days ago
No comments:
Post a Comment